Decipline
अनुशासन
- महाविद्यालय अनुशासन से तात्पर्य ऐसे आतंरिक तथा बाह्य अनुशासन से लिया जाता है जो शारीरिक, बौद्विक, सामाजिक, व नैतिक मूल्यों का विकास करे। इसका तात्पर्य है कि कार्यो को करने की व्यवस्था एवं क्रमबद्वता नियमों तथा आज्ञाओं का पालन। अनुशासन वह है जिसका विकास शनैः-शनैः आत्म नियंत्रण एवं सहयोग की आदत डालने के फलस्वरूप होता है। जिसकी आवष्यकता एवं मूल्य को प्रशिक्षार्थी स्वयं स्वीकार करे। सच्चे अनुशासन का अर्थ तो आत्मनियंत्राण है यह ऐसा स्वभाव है जो संस्था के बाहर तथा छोड़ने के बाद भी दिखाई पड़े।
- अनुशासन की स्थापना में महाविद्याालय के नियमों एवं परंपराओं का बड़ा स्थान है। सामाजिक हित के लिए बलिदान करना आवष्यक होता है, नियमों के अनुसार संस्था में कार्य करने में कोई कठिनाई नही होती है और नही भावी जीवन में नियमित रूप कार्य करने में कोई कठिनाई होती है।
- अतः महाविद्यालय के नियमों को पालन करना प्रत्येक प्रशिक्षार्थी का कर्तव्य है। क्योंकि वह स्वयं प्रशिक्षित अध्यापक बनकर राष्ट्र की भावी पीझ़ी का निर्माण करता है। छात्राध्यापक उससे परिचित हो और उस परंपरा निर्माण में सहयोग दें, वस्तुतः महाविद्यालय अनुशासन स्वस्थ परंपरा का ही विषय है। छात्राध्यापकों से यह अपेक्षा की जाती है िकवे इन्हीं छोटे-छोटे नियमों का पालन कर प्रशिक्षार्थियों के लिये स्वसथ्य एवं अनुकरणीय परंपरा छोड़ सकें।
- महाविद्यालय में भवन सहित पूरी सम्पत्ति प्रशिक्षार्थीयों के हितार्थ है। अतः इनमें से किसी को भी नुकसान व क्षति पहुॅचना, दीवाल मैला करना, अनुशासनहीनता के श्रेणी में आयेगां ।
- महाविद्यालय में छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्यों के विभिन्न राज्यों के विभिन्न धर्म एवं सम्प्रदायों के अनुयायी शिक्षाथी अध्ययनरत हांगे। सभी शिक्षार्थियों का अहम कर्तव्य होगा कि वशुधैव कुटुम्बकम के अर्थ पर आपस में भईचारा एवं मैत्री भव प्रदर्शित कर सर्वधर्म, सर्वजातीय संभाव के साथ प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे महिला प्रशिक्षार्थियों के साथ स्वस्थ वातावरण में स्वच्छ वार्तालाप के साथ समादर व्यवहार प्रदर्षित करें जैंसे िकवे अपनी माॅ, बहन को अभिव्यक्ति देते है। इन सबके विपरीत शिकायत पाया जाना कठोर अनुशासन हीनता मानी जावेगी।
- महाविद्यालय गणवेश का अनुपालन प्रशिक्षार्थियों द्वारा प्रतिदिन किया जाना अनिवार्य होगा, ऐसा नहीं करना अनुशासनहीनता समझी जावेगी।
- अगर कोई छात्राध्यापक महाविद्यालय के अनुशासन को भंग करेंगे तो स्थानांतरण पत्र दे दिया जावेगा। गंभीर अनुशासनहीनता या आचरण संबंधी होने पर उसे निष्कासित करने का भी प्राचार्य को अधिकार है साथ ही अति अनुशासनहीनता पर नियमानुसार कानूनी कार्यवाही भी की जा सकगी, जिसमें पुलिस को सूचना (एफ.आई.आर) शामिल होगा।
- प्राचार्य को अधिकार है वह बिना कारण बताये किसी भी विद्याार्थी का शिकायतों के आधार पर प्रवेश निरस्त कर सकेंगे और इस विषय में कोई कार्यवाही करने का हक किसी व्यक्ति को नहीं होगा।
रैगिंग प्रतिरोधक परिनियम
- यह विशेष अधिनियम विश्वविद्यालय और संबद्व महाविद्यालय के परिसर में रैगिंग कुप्रथा, समाप्त करने के लिये स्थापित किया जा रहा है।
- ठस परिनियम में निहित, अनुदेश विश्वविद्याालय अथवा महाविद्याालय परिसर और संबंद्व छात्रावास परिसर में होने वाली किसी घटना के लिये होंगे।
- रैगिंग में निम्नलिखित अथवा इनमें से एक व्यवहार अथवा कार्य शामिल होगा।
- शारीरिक आघात जैसे-चोट पहुॅचाना, चाटा मारना, पीटना अथवा कोई दण्ड देना।
- मनसिक आघात जैसे मानसिक क्लेश पहुॅचाना, छेड़ना,अपमानित रिना, डाॅटना आदि।
- अश्लील अपमान जैसे असभ्य चुटकले सुनाना, असभ्य व्यवहार करना अथवा ऐसा करने के लिए बाध्य करना।
- सहपाठियों, साथियों या पूर्व छात्रों अथवा बाहरी असामाजिक ततवों के द्वारा अनियंत्रित व्यवहार जैसे हुल्लड़ मचाना, चीखना, चिल्लाना आदि।
- ऐसी किसी घटना की जानकारी प्राप्त होने पर अथवा ऐसी घटना का अवलोकन करने पर महाविद्यालय के प्राचार्य को अथवा विश्वद्यालय के कुलपति को कोई भी विद्यार्थी, शिक्षक, कर्मचारी अभिभावक या कोई नागरिक अपनी शिकायत दर्ज करा सकेगा। ऐसी शिकायत को प्राचार्य महाविद्यालयों और कुलपति विश्वविद्यालयों में गठित प्राॅक्टोरियल बोर्ड को सौपेंगे। इस बोर्ड में चार वरिष्ठ शिक्षक, दो वरिष्ठ विद्याार्थी और दो अभिभावक सदस्य के रूप में प्राचार्य/कुलपति द्वारा मनोनीत कियें जायेंगे। इस हेतु प्रोक्टोरियल बोर्ड की विशेष बैठक आयोजित की जायेगी। यह वरिष्ठतम प्राध्यापक मुख्य प्राॅक्टर कहलायेंगे।
- प्रोक्टोरियल बोर्ड प्रकरण की छानबीन करेगा और अनुशंसा महाविद्याालय के प्राचार्य/विश्वविद्यालय के प्राचार्य/विश्वविद्याालय के कुलपति को देगा।
- प्रोक्टोरियल बोर्ड की अनुशंसा पर महाविद्याालय के प्राचार्य/विश्वविद्यालय के कुलपति आवश्यकतानुसार कार्यवाही कर सकेंगे। दोषी पाये जाने पर संबंधित प्रशिक्षार्थी को निम्नानुसार दण्ड दिया जा सकेगा-
- महाविद्यालय में प्रशिक्षण से वंचित करना।
- दोषी प्रशिक्षार्थी को दण्ड के विरूद्व अपील करने का अधिकारी होगा। यह अपील महाविद्यालय के प्राचार्य/विश्वविद्यालय के कुलपति को संबोधित होगा।
- महाविद्यालय के प्राचार्य/विश्वविद्याालय के कुलपति और प्रोक्टोरियल बोर्ड को ऐसी घटना को विस्तृत जाॅच संस्थित करने का पूर्ण अधिकार होगा और इस हेतु उच्च स्तर से स्वीकृत लेना आवश्यक नहीं होगा, लेकिन की गई कार्यवाही की सूचना राज्यशासन को देना अनिवार्य होगा।
- कोई भी न्यायालय (उच्च न्यायालय को छोड़कर) इस प्रकार की कार्यवाही में प्राचार्य/कुलपति की सहमति के बिना हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा।